मिश्र कविराय की कुंडलिया
सजनी मेरी प्रेयसी, भगिनी मात दयाल।
रक्षा करती रात दिन, रखती हरदम ख्याल।।
रखती हरदम ख्याल, अपलक देखा वह करे।
प्रेमिल स्नेहिल भाव, सदा संगिनी दुख हरे।।
कहें मिश्र कविराय, हृदय विराट सहज धनी।
अतिशय मधर स्वभाव, बहुत मनमोहक सजनी।।
सजनी सुंदर रूपमय, कोमल मृदु मुस्कान।
साजन को दिल में रखे, सदा उसी पर ध्यान।।
सदा उसी पर ध्यान, प्रेम से बातें करती।
हरती सारे शोक, शांति सुख देती रहती।।
कहें मिश्र कविराय, लिखती अपनी जीवनी।
सुख दुख एक समान, समझती प्यारी सजनी।।
सजनी साधारण सरल, थोड़े में संतुष्ट।
लिप्सा से मतलब नहीं, कर्म योग संपुष्ट।।
कर्म योग संपुष्ट, निरंतर चलती रहती।
करती सारे काम, मोहिनी उत्तम लगती।।
कहें मिश्र कविराय, गृह कार्यों में है सनी।
लक्ष्मी वह साक्षात, शक्ति अनुपम है सजनी।।
रचनाकार: डोकर रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१
Teena yadav
02-Nov-2022 06:14 PM
Shandar
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Haaya meer
02-Nov-2022 05:39 PM
Amazing
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Muskan khan
02-Nov-2022 04:59 PM
Well done ✅
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